सोमवार, 22 जून 2020

एक महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन

 दोस्तों हम जब महान  गणितज्ञों  या फिर वैज्ञानिकों  की बात करते हैं  तो हमारे दिमाग़  में  अल्बर्ट  आइंस्टाइन, पाइथोगोरस, आर्यभट्ट आदि के नाम आते हैं  लेकिन हमारे में से अधिकांश भारतीय श्रीनिवास रामानुजन के नाम से अपरिचित है। तो दोस्तों आज हम इनके बारे में जाने कि इनका जीवन कैसा रहा और इनकी गणित के क्षेत्र में क्या उपलब्धियाँ रही। 

 

       इनका जीवन और उपलब्धियाँ इनको अन्य गणितज्ञों से अलग करती है :--- 

1. इन्होंने किसी और से नहीं बल्कि स्वयं से गणित को सीखा। 

2. इनकी योग्यता को भारत ने नहीं बल्कि इंग्लैंड में समझा गया। 

3. रॉयल सोसाइटी की सदस्यता के बाद यह ट्रिनीटी कॉलेज की फ़ेलोशिप पाने वाले पहले भारतीय भी बने। 

4. उन्होंने गणित को आध्यात्म से जोड़कर ही अपना कार्य किया। 

आइये अब इनके जीवन के बारे में जाने :--- 

         श्रीनिवास रामानुजन अय्यंगर का जन्म 22 दिसम्बर 1887 में कोयंबटूर के ईरोड गावँ में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर और माता का नाम कोमलताम्मल था। बचपन से ही ये साधारण बालकों से अलग थे। तीन वर्ष तक तो इन्होंने बोलना भी नहीं सीखा था। इनको प्रारम्भिक शिक्षा में कोई रूचि नहीं थी लेकिन शिक्षकों से प्रश्न पूछने का इनको बड़ा शौक था। इनके प्रश्न भी बड़े रहस्यमय होते थे जैसे पृथ्वी और बादलों की दूरी कितनी होती है आदि। इनका व्यवहार इतना सौम्य था कि जो भी इनसे मिलता इनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता। गणित में इनकी इतनी अधिक रूचि थी कि जो सवाल कॉलेज में आते थे वे सवाल इन्होंने स्कूल में रहते हुए ही हल कर लिए। परिवार की आर्थिक स्थिति सही नहीं होने के कारण इनको पढ़ाई छोड़नी पड़ी और ट्युसन करके अपना गुजारा करना पड़ा। लेकिन इनकी ईश्वर के प्रति दृढ़ आस्था और गणित के प्रति लगन ने इनके गणित के शोध के कार्य को रुकने नहीं दिया। 

जब इनके माता -पिता ने इनकी शादी कर दी तो ये नौकरी की तलाश में मद्रास गए लेकिन  वहाँ भी पहले प्रयास में इनको कोई नौकरी नहीं मिली और स्वास्थ्य भी ख़राब हो गया था इसलिए ये वापस गावँ चले गए। बाद में ठीक होने के बाद ये वापस मद्रास गए और वहाँ के डिप्टी कलेक्टर श्री वी. रामास्वामी अय्यर से मिले जो गणित के विद्वान् थे। उन्होंने इनसे प्रभावित होकर इनको नौकरी दिलवा दी। यहाँ पर रहते हुए इन्होंने अपना पहला शोधपत्र `बरनौली संख्याओं के गुण ' प्रकाशित किया। उस समय अपने शोध कार्य को आगे बढ़ाने के लिए किसी अंग्रेज प्रोफ़ेसर की सहायता लेना अतिआवश्यक था इसलिए इनके कुछ मित्रों ने इनके द्वारा लिखे गए शोध को इंग्लैंड के प्रसिद्ध गणितज्ञों के पास भेजा। वहाँ प्रोफ़ेसर हार्डी रामानुजन के सूत्रों से बहुत प्रभावित हुए और उनको कैम्ब्रिज आने का न्यौता दिया। 

वहाँ जाकर इन्होंने विशेष शोध लिखा जिसके कारण से इनको कैंब्रिज विश्विद्यालय द्वारा बी.ए. की उपाधि भी मिली।इसके बाद वहाँ उनको रॉयल सोसायटी का फेलो नामित किया गया। ये फेलो पाने वाले वे सबसे कम उम्र के पहले सदस्य थे। बाद में उन्हें ट्रिनीटी कॉलेज की फ़ेलोशिप भी मिली जो कि किसी पहले भारतीय को यह दी गयी थी। वहाँ रहते हुए इनका स्वास्थ्य ख़राब होने लगा और उस समय की असाध्य बीमारी क्षय रोग इनको हो गया जिसके कारण ये वापस भारत लौट आये। बीमारी में भी इन्होंने मॉक थीटा फ़ंक्शन पर एक शोध लिखा जो कि गणित ही नहीं बल्कि चिकत्साविज्ञान में भी कैंसर को समझने के लिए प्रयोग किया जाता है। 26 अप्रेल 1920 में केवल 33 वर्ष की अल्पायु में इनका देहांत हो गया। 

रामानुजन द्वारा किए गए कार्य आज भी वैज्ञानिकों के लिए अबूझ पहेली जैसे हैं। रामानुजन का आध्यात्म के प्रति विश्वास इतना गहरा था कि वे अपने गणित के क्षेत्र में किये गए किसी भी कार्य को आध्यात्मिकता का ही एक अंग मानते थे। वे धर्म और आध्यात्मिकता में केवल विश्वास ही नहीं रखते थे बल्कि उसे तार्किक रूप से प्रस्तुत भी करते थे। वे कहते थे कि "मेरे लिए गणित के उस सूत्र का कोई मतलब नहीं है जिससे मुझे आध्यात्मिक विचार न मिलते हों।” 



इनके जीवन पर आधारित एक फ़िल्म भी बनी थी  `The Man Who Knew Infinity' इसको एक बार जरूर देखिएगा। दोस्तों आशा है आपको मेरा ये लेख और वीडियो अच्छा लगा होगा। एक अच्छा लगा हो तो कृपया मेरे ब्लॉग और यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब, फॉलो , लाइक और शेयर जरूर कीजियेगा। 

धन्यवाद !

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