रविवार, 17 मई 2020

रहीम के पदों का अर्थ { सीबीएसई क्लास 9 हिंदी स्पर्श }

रहीम का जन्म लाहौर में सन् 1556 में हुआ था। इनका पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। रहीम अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक थे। रहीम हिन्दी , अऱबी , फ़ारसी और संस्कृत के अच्छे जानकार थे। रहीम के काव्य का मुख्य विषय श्रंगार, नीति  और भक्ति है। रहीम बहुत लोकप्रिय कवि थे। यहाँ इनके नीतिपरख दोहे दिए जा रहे हैं  जिनके माध्यम से इन्होंने इंसान को सीख़ दी हैं। 

तो आइए इनके दोहों का भावार्थ देखें :---

( 1 ) रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।

      टूटे से  फिर ना मिले , मिले गाँठ परि जाय।।

रहीम के अनुसार प्रेम रूपी धागा अगर एक बार टूट जाता है तो दोबारा नहीं जुड़ता। अगर इसे जबरदस्ती जोड़ भी दिया जाए तो पहले की तरह सामान्य नहीं रह जाता, इसमें गांठ पड़ जाती है। अर्थात हमारे किसी के साथ संबंधों में एक बार दरार आ जाती है तो बाद में हम कितनी ही कोशिश कर ले पहले जैसे सम्बन्ध नहीं हो सकते। 

( 2 ) रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।

        सुनी अठिलैहैं  लोग सब, बाँटि न  लैंहैं  कोय।।

रहीम कहते हैं कि अपने दुःख को मन के भीतर ही रखना चाहिए क्योंकि उस दुःख को कोई बाँटता नहीं  है बल्कि लोग उसका मजाक ही उड़ाते हैं। इस दोहें का मूल भाव यह है कि इस संसार में दूसरों के दुःख -दर्द को समझने वाले बहुत कम लोग हैं  अत: हमारे दिल की पीड़ा को किसी के सामने व्यक्त नहीं करना चाहिए। 

( 3 ) एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय। 

       रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय ।।

रहीम के अनुसार अगर हम एक-एक कर कार्यों को पूरा करने का प्रयास करें तो हमारे सारे कार्य पूरे हो जाएंगे, सभी काम एक साथ शुरू कर दियें तो तो कोई भी कार्य पूरा नहीं  हो पायेगा। वैसे ही जैसे सिर्फ जड़ को सींचने से ही पूरा वृक्ष हरा-भरा, फूल-फलों से लदा रहता है। मूलभाव यह है कि इस सृष्टि के मूल अर्थात परमात्मा की साधना करने से ही हमें सब कुछ प्राप्त हो सकता हैं। 

( 4 ) चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध -नरेस। 

      जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस ।।

रहीम कहते हैं कि चित्रकूट में अयोध्या के राजा राम आकर रहे थे जब उन्हें 14 वर्षों के वनवास प्राप्त हुआ था। इस स्थान की याद दुःख में ही आती है, जिस पर भी विपत्ति आती है वह शांति पाने के लिए इसी प्रदेश में खिंचा चला आता है। अर्थात जिस पर विपत्ति आती है, वह शांति की तलाश में ऐसे ही स्थान पर चला आता है। 

( 5 ) दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं। 

      ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढिं जाहिं॥

रहीम कहते हैं कि दोहा छंद ऐसा है जिसमें अक्षर थोड़े होते हैं किंतु उनमें बहुत गहरा और दीर्घ अर्थ छिपा रहता है। जिस प्रकार कोई कुशल बाजीगर अपने शरीर को सिकोड़कर तंग मुँह वाली कुंडली के बीच में से कुशलतापूर्वक निकल जाता है उसी प्रकार कुशल दोहाकार दोहे के सीमित शब्दों में बहुत बड़ी और गहरी बातें कह देते हैं।

( 6 ) धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय।

          उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय।।

रहीम कहते हैं कि कीचड़ का जल सागर के जल से महान है क्योंकि कीचड़ के जल से कितने ही लघु जीव प्यास बुझा लेते हैं। सागर का जल अधिक होने पर भी पीने योग्य नहीं है। संसार के लोग उसके किनारे आकर भी प्यासे के प्यासे रह जाते हैं। मतलब यह कि महान वही है जो किसी के काम आए चाहे उसके पास अधिक सम्पत्ति ना हो। 


( 7 ) नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।

       ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत ।।

रहीम कहते हैं कि संगीत की तान पर रीझकर हिरन शिकार हो जाता है। उसी तरह मनुष्य भी प्रेम के वशीभूत होकर अपना तन, मन और धन न्यौछावर कर देता है लेकिन वह लोग पशु से भी बदतर हैं जो किसी से खुशी तो पाते हैं पर उसे देते कुछ नहीं है। अर्थात अगर मनुष्य किसी की कला पर मोहित होकर कुछ दान नहीं करता तो वह मनुष्य पशु से भी अघम है। 

( 8 ) बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय। 

      रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।

रहीम कहते हैं कि मनुष्य को सोच समझ कर व्यवहार करना चाहिए क्योंकि किसी कारण वश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है, जैसे यदि एक बार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथकर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा। इस दोहे का मूल भाव यह है कि हमें कोई भी कार्य करने से पहले अच्छी तरह से सोच -समझ लेना चाहिए क्योंकि एक बार कार्य या बात बिगड़ गयी तो फिर उसको वापस ठीक करना बड़ा मुश्किल होता है। 

( 9 ) रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि। 

        जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।।

रहीम के अनुसार हमें बड़ी वस्तु को देख कर छोटी वस्तु का अनादर नहीं करना चाहिए क्योंकि उनका भी अपना महत्व होता है। जैसे छोटी सी सुई का काम बडी तलवार नहीं कर सकती क्योंकि सुई का कार्य तो जोड़ना है जबकि तलवार तो काटने का ही कार्य करेगी।अर्थात छोटा समझ कर किसी का अनादर नहीं करना चाहिए क्योंकि हो सकता है जो कार्य बड़े लोग नहीं कर पाए वह इसके द्वारा हो जाये। 

( 10 ) रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय।

         बिनु पानी ज्‍यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय।।

रहीम कहते हैं कि संकट की स्थिति में मनुष्य की निजी धन-दौलत ही उसकी सहायता करती है।जिस प्रकार पानी का अभाव होने पर सूर्य कमल की कितनी ही रक्षा करने की कोशिश करे, फिर भी उसे बचाया नहीं जा सकता ; उसी प्रकार मनुष्य को बाहरी सहायता कितनी ही क्यों न मिले, किंतु उसकी वास्तविक रक्षक तो निजी संपत्ति या गुण ही होते हैं।

( 11 ) रहिमन पानी राखिए , बिनु  पानी सब सून। 

          पानी गए  न ऊबरै , मोती, मानुष, चून ।।

रहीम कहते हैं कि पानी का बहुत महत्त्व है। इसे बनाए रखो। यदि पानी समाप्त हो गया तो न तो मोती का कोई महत्त्व है, न मनुष्य का और न आटे का। पानी अर्थात चमक के बिना मोती बेकार है। पानी अर्थात सम्मान के बिना मनुष्य का जीवन व्यर्थ है और जल के बिना रोटी नहीं बन सकती, इसलिए आटा बेकार है। अर्थात मनुष्य को हमेशा पानी यानि अपने सम्मान को बचाकर रखना चाहिए क्योंकि उसके बिना उसका जीवन व्यर्थ है। 

अब जरा ये नीचे दिया हुआ वीडियो देखिए जिससे आप को इन दोहों का भाव और भी अच्छी तरह समझ में आ जाये :---


तो मुझे आशा है कि आप इस वीडियो और लेख के माध्यम से इन दोहों का भाव अच्छी तरह से समझ में आ गया होगा। अगर आपको मेरा लेख और वीडियो अच्छा लगा हो तो कृपया मेरे ब्लॉग और यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब ,शेयर ,लाइक और फॉलो जरूर कीजियेगा। 

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