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रविवार, 3 मई 2020
रैदास के पदों का अर्थ { सीबीएसई क्लास 9 हिंदी स्पर्श }
रैदास
रैदास का जन्म सन् 1388 में हुआ था और देहावसान 1518 में बनारस में हुआ ,ऐसा माना जाता है। इनका मूल नाम संत रविदास था। मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा जैसे दिखावों में रैदास का बिलकुल भी विश्वास नहीं था। रैदास ने अपनी रचनाओं में सरल,व्यावहारिक ब्रज भाषा का प्रयोग किया है , जिसमें अवधि, राजस्थानी, खड़ी बोली और उर्दू -फ़ारसी के शब्दों का मिश्रण भी है।
आइये अब उनके कुछ पदों का भावार्थ देखे ----
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा॥
उपरोक्त पंक्तियों में संत रैदास ने अपनी ईश्वर के प्रति भक्ति भावना को व्यक्त किया है। वे कहते है कि जिस तरह बहुत सी चीजे एक दूसरे से जुडी हुई हैं उसी तरह भक्त और भगवान का नाता भी एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। उनका कहना है कि मेरे मन में तो श्री राम ( ईश्वर ) का निवास हो गया है अत : अब उनसे मेरा ध्यान तो हटाए भी नहीं हटता। मेरी वाणी तो हमेशा उन्हीं का नाम रटती रहती है। आगे वे कहते है कि प्रभु आप चन्दन हो और मैं पानी जिस प्रकार चंदन की सुगंध पानी में मिलने के बाद पूरे पानी को सुगन्धित कर देती है उसी तरह मेरे मन में भी मेरे प्रभु की भक्ति ने मेरे अंग-अंग को उनका दीवाना बना दिया है। अगली पंक्ति में वे कहते है कि प्रभु आप बादल है और मैं मोर। जिस तरह बरसात के बादलों को देखकर मोर ख़ुशी से नाचने लगता है उसी तरह मेरा मन भी प्रभु की भक्ति पाकर भक्ति में नाच उठता है। जैसे चन्द्रमा को अत्यधिक प्रेम करने वाला चकोर पक्षी बड़े प्रेम से एकटक अपने प्रेमी (चन्द्रमा ) को निहारता रहता है उसी तरह मैं भी आपके सुन्दर और पवित्र रूप को अपनी भक्ति और प्रेम से निहारता रहता हूँ। आगे रैदास जी कहते है कि प्रभु आप दीपक हो और मैं उसकी बाती के समान। जैसे दीपक में बाती जलती रहती है, वैसे ही, एक भक्त भी प्रभु की भक्ति में जलकर सदा प्रज्वलित होता रहता है। आगे की पंक्तियों में उन्होंने ईश्वर की तुलना मोती से की है और स्वयं को धागा बताया है जिसमें वह पिरोया जाता है। अर्थात् उनके कण-कण में प्रभु के समा जाने से वे ठीक उसी तरह पवित्र हो गए है जैसे सोने में सुहागा मिलाने से सोना शुद्ध हो जाता है। इस प्रकार रैदास ने अपने पदों में अपनी भक्ति का वर्णन करते हुए , स्वयं को एक दास और प्रभु को अपना स्वामी बताया है।
ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।
गरीब निवाजु गुसईआ मेरा माथै छत्रु धरै।।
जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै।
नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै॥
नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरै।
कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै॥
रैदास ने उपरोक्त पंक्तियों में प्रभु की कृपा एवं महिमा का वर्णन किया है। उनके अनुसार इस संपूर्ण जगत में प्रभु से बड़ा कृपालु और कोई नहीं। वे गरीब एवं दिन- दुखियों को समान भाव से देखने वाले हैं। वे छूत-अछूत में विश्वास नहीं करते हैं और मनुष्य-मनुष्य के बीच कोई भेदभाव नहीं करते। इसी कारण वश कवि को यह लग रहा है कि अछूत होने के बाद भी उन पर प्रभु ने असीम कृपा की है। प्रभु की इस कृपा की वजह से कवि को अपने माथे पर राजाओं जैसा छत्र महसूस हो रहा है।रैदास के पद की इन पंक्तियों से पता चल रहा है कि कवि खुद को नीच एवं अभागा मानते थे। उसके बाद भी प्रभु ने उनके ऊपर जो कृपा दिखाई है, कवि उससे फूले नहीं समा रहे हैं। प्रभु अपने भक्तों में भेदभाव नहीं करते हैं, वे सदैव अपने भक्तों को समान दृष्टि से देखते हैं। वे किसी से नहीं डरते एवं अपने सभी भक्तों पर एक समान कृपा करते हैं। प्रभु के इसी गुण की वजह से नामदेव जैसे सामान्य व्यक्ति , कबीर जैसे जुलाहे, सधना जैसे कसाई, सैन जैसे नाई एवं त्रिलोचन जैसे वैश्य व्यक्तियों को इतनी ख्याति प्राप्त हुई। प्रभु की कृपा से उन्होंने इस संसार-रूपी सागर को पार कर लिया। अंतिम पंक्ति में रैदास संतों से कहते हैं कि प्रभु की महिमा अपरम्पार है और वो कुछ भी कर सकते हैं।
इस प्रकार से आज हमने रैदास की भक्ति भावना की इन दोनों पदों में झलक देखी। आशा है आपको इन पदों का अर्थ समझ में आ गया होगा। फिर भी और अच्छा जानने के लिए आप नीचे दिया गया वीडियो देखिए ----
आशा है आप इस वीडियो और लेख के माध्यम से इन पदों का भावार्थ अच्छी तरह से समझ चुके होंगे। ऐसी ही और भी उपयोगी जानकारी के लिए कृपया आप मेरे ब्लॉग और यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइबर ,फॉलो और शेयर कीजियेगा।
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